भारत के 22वें विधि आयोग ने एक रिपोर्ट जिसकी संख्या 286 हैं। (इसमें “महामारी रोग अधिनियम, 1897 की विस्तारपूर्ण समीक्षा की है।) यह रिपोर्ट भारत सरकार को सौंप दी है।
कोविड-19 महामारी भारतीय स्वास्थ्य ढांचे के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी, जिस पर सरकार को तुरंत प्रतिक्रिया देना अति आवश्यक था। जिससे उभरती हुई स्थिति को काबू में लाया जा सके। महामारी के समय ऐसा कदम बहुत आवश्यक कदम है क्योंकि महामारी जितने कम लोगो तक पहुंचेगी उतना जल्द देश इससे उबरेगा। महामारी रोग अधिनियम, 1897 में कहीं पर भी लोगो को सार्वजनिक जगह जाने से रोकना नहीं है। इसलिए कोविड – 19 पर तत्काल प्रतिक्रिया लेते हुए भारत सरकार ने ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005‘ के द्वारा लॉकडाउन लागू किया। जिससे लोगो को सार्वजनिक स्थान पर जाने से रोका जा सके।
इसके संदर्भ में, केंद्रीय मंत्रिमंडल 22 अप्रैल 2020 को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में महामारी के दौरान हिंसा के खिलाफ स्वास्थ्य सेवा कर्मियों और उनके रहने/कार्य करने के परिसरों सहित संपत्ति की रक्षा के लिए महामारी रोग अधिनियम, 1897 में संशोधन करने के लिए एक अध्यादेश की घोषणा को मंजूरी दे दी है। राष्ट्रपति ने अध्यादेश जारी करने के लिए अपनी मंजूरी दे दी है. अध्यादेश में स्वास्थ्य सेवा कर्मियों को चोट पहुंचाने या संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए मुआवजे का प्रावधान है और हिंसा के ऐसे कृत्यों को संज्ञेय(बिना वारंट के गिरफ्तारी) और गैर-जमानती अपराध की श्रेणी में रखा गया। जिससे स्वास्थ्य सेवा कर्मियों का महामारी के संबंध में प्रत्यक्ष हित हो सकता है।
फिर भी देखने में आया की केंद्र और सभी राज्यों को पुलिस दिन रात एक करके ऐसी महामारी में डटकर महामारी को नियंत्रित करने का प्रयास करती दिखी। और पुलिस के साथ साथ अन्य कुछ कर्मी जो अप्रत्यक्ष रूप से महामारी को नियंत्रित करने में मदद कर रहे थे। उनके लिए महामारी रोग अधिनियम,1897 में कोई प्रावधान नहीं है।
हमारे संविधान में स्वास्थ्य का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित एक मौलिक अधिकार है और राज्य और केंद्र इसे नागरिकों के लिए सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है, ऐसे कभी भविष्य में स्वास्थ्य आपातकाल मामले से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए कानून पर फिर से विचार करना और उसे मजबूत करना अनिवार्य हो जाता है।
इसके अलावा सरकार ने महामारी के दौरान तत्काल फैसला लेते हुए ‘महामारी रोग विधेयक (संशोधन) विधेयक 2020‘ लागू किया। और महामारी रोग अधिनियम, 1897 की समीक्षा करने का फ़ैसला लिया।
इसकी रिपोर्ट 22 वें विधि आयोग ने सरकार को सौंप दी है।
22वें विधि आयोग का मानना है, कि मौजूदा कानून देश में भविष्य में आने वाली किसी प्रकार की महामारियों की रोकथाम और प्रबंधन से संबंधित चिंताओं को व्यापक रूप से संबोधित नहीं करता है क्योंकि नए संक्रामक रोग या मौजूदा रोग से अलग प्रकार से उभर सकते हैं।
विधि आयोग ने स्वत: संज्ञान लेते हुए इस विषय पर मौजूदा कानूनी ढांचे की व्यापक जांच की। आयोग ने सिफारिश की है कि मौजूदा कमियों को दूर करने के लिए या तो मौजूदा कानून में उचित संशोधन करने की जरूरत है या इस विषय पर एक नया व्यापक कानून बनाया जाना चाहिए।
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